शनिवार को विधानसभा में राजस्थान विधानसभा में सेमीनार का आयोजन किया गया। जिसमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सदन को संबोधित किया। इस दौरान नेताओं के दल बदलने पर गहलोत ने कहा कि फुल प्रूफ यह हो सकता है कि चुनाव जितने के बाद में कोई व्यक्ति, चाहे वो निर्दलीय जीतता है, चाहे राजनीतिक पार्टी का है। कानून बने कि वो किसी भी कीमत पर दल बदल नहीं सकता। यदि बदलेगा तो उसकी सदस्यता जाएगी।
गहलोत बोले कि 35 साल पहले जब राजीव गांधी थे प्राइम मिनिस्टर तब ये 52 वां सशोधन 85 में लाया गया। शुरूआत की गई 35 साल का सफर हम देख रहे है। जिस रूप में ये दल-बदल के कानून के बनने के बावजूद भी करीब-करीब हर प्रदेश के अंदर ऐसी घटनाएं हुई है। किसी ना किसी रूप में और बहस छिड़ जाती है।
सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम है, वो कोई भी फैसला दे सकता है
अभी बहस ये छिड़ी की स्पीकर के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में कैसे चुनौती मिल सकती है, या वो कैसे कमेंट कर सकता है। ये बहुत बहुत डिस्कशन का विषय है। कई बार देखते है कि मुख्यमंत्री को शपथ दिला दी जाती है। उसके बाद भी सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले देता है, देता आ रहा है। यूपी के अंदर हुआ, बिहार के अंदर हुआ। शपथ हो गई मुख्यमंत्री की और दूसरे दिन उनको इस्तीफा देना पड़ा वापस। सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम है, वो कोई भी फैसला दे सकता है,कमेंट कर सकता है। पार्लियामेंट को अधिकार है कि सुप्रीम कोर्ट का कोई ऐसा फैसला आए तो वो संविधान में संशोधन करके बदल सकता है। मेरी दृष्टि के अंदर ये विषय बहुत ही नाजुक है।
हर किसी का पॉलिटिकल पार्टी से एलाइन्स रहता है
हर किसी को राजनीतिक पार्टी से आगे आकर अध्यक्ष बनने का मौका मिलता है। उसी रूप में आपने देखा होगा कोई व्यक्ति हो चाहे इलेक्शन कमीशन, चाहे हाईकोर्ट जज हो या सुप्रीम कोर्ट जज हो, जज बनने से पहले वो भी कोई ना कोई पॉलिटिकल पार्टी से एलाइन्स रहता है। वो ही हाईकोर्ट जज बनते है वो ही सुप्रीम कोर्ट में जाते है, वो ही सीजेआई बनते है। शपथ लेने के बाद में उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वो शपथ के आधार पर अपने कॉन्शियस से फैसला करें। अगर ये भावना नहीं होगी कि तो भले यह अधिकार चाहे अध्यक्षजी के पास रहे या जैसा सुप्रीम कोर्ट ने कमेंट कर दिया की वो तो अध्यक्ष तो किसी पार्टी से आते है। उसका भी कोई बैक ग्राउंड होगा।
संविधान बचाओ
ये 5-6 महीने में जो माहौल देश के अंदर बना है। संविधान बचाओ, अगर संविधान बच जाता है तो खुद ही ये सब बातें ठीक हो जाएगा। सविधान की धज्जियां उड़ जाती हैं, तो फिर ये बातें आप कुछ भी कर लो वो मौजूद नहीं होती है। प्रोयोरिटी यह भी हो सकती है जो विषय हमारे लोकसभा के अध्यक्ष जी ने दिया है हमारे अध्यक्षजी को, वो निभाएं हम सब इनके साथ हैं। परन्तु प्राथमिकता और बहुत सी दूसरी भी है। जिस प्रकार से हालात बने हुए है पूरे मुल्क के अंदर अभी सब जगह धरने चल रहे है। प्रदर्शन चल रहे है क्यों चल रहे है। ये संविधान की मूल भावना क्या है। ये सब जो हम लोग बात कर रहे है 52 वें सशोधन की करें। ये भी संविधान के अंर्तगत है। इसलिए यदि संविधान की मूल भावना नहीं रहेगी तो ये सब बातें किस काम आएगी। इसलिए मैं समझता हूं कि बहुत ही आपने सोच समझकर सेमिनार का आयोजन किया।